Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

Previous | Next

Page 588
________________ शब्द अंकुशा अंग अंतराय अंतद्वप अंधकवृष्णि अंघ अंब २१, २३ अंगप्रविष्ट २१, २३, २७०,२७१ अंगबाह्य २१, ४१, २७०, २७१ अंगुत्तरनिकाय ३० अंतःकरण २५५ अंतकालप्रकीर्णक Y अंतकृतदशा २३, ४० अंतगडदसा २३ अंतरद्वीप २३२ ४६२, ४७२. २४१ अंबरीष अंबा अंबिका अकलंक अकस्मात्वाद अकारणवाद अकालमृत्यु अनुक्रमणिका Jain Education International पृष्ठ २४० ८ १७ २३५ २३५ २४० २३६ ७१, ८३ ४२१ ४२१ ४६६ शब्द अक्रियावाद अक्षर अक्षरीकृत अगमिक अग्रकमं अगस्त्य सिंह अगुरुलघु अग्निकुमार अचक्षुर्दर्शन अचक्षुर्दर्शनावरण अचेल अचेलक बच्छुप्ता अच्युत अच्युता अजातशत्रु अजित अजितनाथ अजिता अजीव अज्ञानमरण अज्ञानवाद For Private & Personal Use Only पृष्ठ ३० २७१ १६८ २७१ ४३५ ५७ ४६८ २३७ १५६ ४६२ ५२१ ११, १६, ५२१ २४० २३४ २४० १४ २४० २३ε २३६ १३६ ५५६ ३० www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658