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प्रथम प्रतिमा में सम्यग्दृष्टि अर्थात् आस्तिक दृष्टि प्राप्त होती है । इसमें सर्वधर्मविषयक रुचि अर्थात् सर्वगुणविषयक प्रीति होती है । दृष्टि दोषों की ओर न जाकर गुणों की ओर जाती है। यह प्रतिमा दर्शनशुद्धि अर्थात् दृष्टि की विशुद्धताश्रद्धा की सचाई से सम्बन्ध रखती है । इसमें गुणविषयक रुचि की विद्यमानता होते हुए भी शीलव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि की सम्यक् आराधना नहीं होती। इसका नाम दर्शनप्रतिमा है।
आचारशास्त्र
द्वितीय प्रतिमा का नाम व्रतप्रतिमा है। इसमें शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि तो सम्यक्तया धारण किये जाते हैं किन्तु सामायिक व्रत एवं देशावकाशिक व्रत का सम्यक् पालन नहीं होता ।
तृतीय प्रतिमा का नाम सामायिकप्रतिमा है। इसमें सामायिक एवं देशावकाशिक व्रतों की सम्यक् आराधना होते हुए भी चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि के दिनों में पौषधोपवास व्रत का सम्यक् पालन नहीं होता ।
चतुर्थ प्रतिमा में स्थित श्रावक चतुर्दशी आदि के दिनों में प्रतिपूर्ण पौषध व्रत का सम्यक्तया पालन करता है । इसका नाम पौषधप्रतिमा है ।
पाँचवीं प्रतिमा का नाम है नियमप्रतिमा । इसमें स्थित श्रमणोपासक निम्नोक्त पाँच नियमों का विशेष रूप से पालन करता है : १. स्नान नहीं करना, २ . रात्रिभोजन नहीं करना, ३. धोती की लांग नहीं लगाना, ४ दिन में ब्रह्मचारी रहना एवं रात्रि में मैथुन की मर्यादा करना ५ एकरात्रिकी प्रतिमा
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