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आचारशास्त्र
५६५ उद्दिष्टभक्तत्याग के ही अन्तर्गत समाविष्ट है क्योंकि इसमें श्रावक उद्दिष्टभक्त ग्रहण न करने के साथ ही किसी प्रकार के आरम्भ का समर्थन भी नहीं करता। श्वेताम्बराभिमत श्रमणभूतप्रतिमा ही दिगम्बराभिमत उद्दिष्टत्यागप्रतिमा है क्योंकि इन दोनों में श्रावक का आचरण भिक्षुवत् होता है। क्षुल्लक व ऐलक श्रमण के ही समान होते हैं।
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