________________
आचारशास्त्र
२२६
पानी के लिए गहपति के घर की ओर एक बार और जाया जा सकता है । इसी प्रकार षष्ठभक्त अर्थात दो उपवास करने वाले भिक्ष को गोचरी के समय आहार-पानी के लिए गृहस्थ के घर को ओर दो बार और जाना कल्प्य है । अष्टमभक्त अर्थात् तीन उपवास करने वाला भिक्षु गोचरी के समय आहार-पानी के लिए गृहपति के घर की ओर तीन बार और जा सकता है। विकृष्टभक्त अर्थात् अष्टमभक्त से अधिक तप करने वाले भिक्ष के लिए एतद्विषयक कोई निर्धारित संख्या अथवा समय नहीं है। वह अपनी सुविधानुसार किसी भी समय एवं कितनी ही बार आहार-पानी के लिए गृहस्थ के घर जा सकता है। उसे इस विषय में पूर्ण स्वतन्त्रता है।
नित्य भोजी भिक्षु को सब प्रकार का निर्दोष पानी लेना कल्प्य है। चतुर्थभक्त करने वाले भिक्ष को निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी ग्रहण करना कल्प्य है : उत्स्वेदिम अर्थात् पिसे हुए अनाज का पानी, संस्वेदिम अर्थात् उबले हुए पत्तों का पानी और तन्दुलोदक अर्थात् चावल का पानी । षष्ठभक्त करने वाले भिक्षु के लिए निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी विहित है : तिलोदक अर्थात् तिल का पानी, तुषोदक अर्थात् तुष का पानी और यवोदक अर्थात् जी का पानी । अष्टमभक्त करने वाले भिक्षु के लिए निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी विहित है : आयाम अर्थात् पके हुए चावल का पानी, सौवीर अर्थात् कांजी और शुद्धविकट अर्थात् गरम पानी। विकृष्टभक्त करने वाले भिक्ष को केवल गरम पानी ग्रहण करना कल्प्य है ।
पाणिपात्र भिक्ष को तनिक भी पानी बरसता हो तो भोजन के लिए अथवा पानी के लिए नहीं निकलना चाहिए। पात्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org