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जैन धर्म-दर्शन
समय के उपरान्त कार्य लेना, उन्हें अपने इष्ट स्थान पर जाने में अंतराय पहुंचाना आदि बंब के ही अन्तर्गत हैं। किसी भी त्रस प्राणी को मारना वध है । पीटना भी वध का ही एक रूप है । अपने आश्रित व्यक्तियों को अथवा अन्य किसी को निर्दयतापूर्वक या क्रोधवश मारना पीटना, गाय, भैंस, घोड़ा, बैल आदि को लकड़ी, चाक, पत्थर आदि से मारना, किसी पर अनावश्यक अथवा अनुचित आर्थिक भार डालना, किसी की लाचारी का अनुचित लाभ उठाना, किसी का अनैतिक ढंग से शोषण कर अपनी स्वार्थपूर्ति करना आदि क्रियाएँ वध में समाविष्ट हैं । प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी प्राणी की हत्या करना, किसी को मारना पीटना, संताप पहुंचाना, तड़पाना, चूसना आदि वध के ही विविध रूप हैं । अनीतिपूर्वक किसी की आजीविका छीनना अथवा नष्ट करना भी वध का ही एक रूप है । तीसरा अतिचार छविच्छेद है । किसी भी प्राणी के अंगोपांग काटना छविच्छेद कहलाता है । चूंकि छविच्छेद से प्राणी को पीड़ा होती है अतः वह त्याज्य है । छविच्छेद की तरह वृत्तिच्छेद भी दोषयुक्त है । किसी की वृत्ति अर्थात् आजीविका का सर्वथा छेद करना याने रोजी छीन लेना तो ववरूप होने के कारण दोषयुक्त है हो, उचित पारिश्रमिक में न्यूनता करना, कम वेतन देना, कम मजदूरी देना, अनुचित रूप से वेतन या मजदूरी काट लेना, नौकर या मजदूर को छुट्टी आदि की पूरी सुविधाएं न देना आदि क्रियाएँ भी छविच्छेद की ही भाँति दोषयुक्त हैं। चौथा अतिचार अतिभार है। बैन, ऊंट, अश्व आदि पशुओं पर अथवा मजदूर, नौकर आदि मनुष्यों पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादना अतिभार कहलाता | है शक्ति एवं समय होने पर भी अपना काम खुद न कर दूसरों से
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