Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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आचारशास्त्र
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करवाना अथवा किसी से शक्ति से अधिक काम लेना भी अतिभार ही है। पांचवाँ अतिचार अन्नपान निरोध है। किसी के खान-पान में रुकावट डालने वाला इस अतिचार का भागी होता है। नौकर आदि को समय पर खाना न देना, पूरा खाना न देना, ठीक खाना न देना, अपने पास संग्रह होने पर भी आवश्यकता के समय किसी की सहायता न करना, अपने अधीनस्थ पशुओं एवं मनुष्यों को पर्याप्त खाना आदि न देना अन्नपाननिरोध है । श्रावक को इन सब अतिचारों से दूर रहना चाहिए-इस प्रकार के अनेक दोषों से बचना चाहिए।
२. स्थूल मृषावाद-विरमण-जिस प्रकार श्रमणोपासक के लिए स्थूल प्राणातिपात अर्थात् हिंसा से बचना आवश्यक है उसी प्रकार उसके लिए स्थूल मृषावाद अर्थात् झूठ से बचना भी जरूरी है । जिस प्रकार हिंसा न करना प्राणातिपात-विरमण व्रत का निषेधात्मक पक्ष है तथा रक्षा, अनुकम्पा, परोपकार आदि करना अहिंसा का विधेयात्मक रूप है उसी प्रकार असत्य वचन न बोलना मृषावाद-विरमण व्रत का निषेधात्मक पक्ष है तथा सत्य वचन बोलना इस व्रत का विधेयात्मक रूप है। इससे व्यक्ति को सत्यनिष्ठ होने की शिक्षा मिलती है। उसके जीवन में सचाई व ईमानदारी का विकास होता है । अहिंसा की आराधना के लिए सत्य की आराधना अनिवार्य है। झूठा व्यक्ति सही अर्थ में अहिंसक नहीं हो सकता। सच्चा अहिंसक कभी असत्य आचरण नहीं कर सकता। सत्य और अहिंसा का इतना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक के अभाव में दूसरे की आराधना अशक्य है । ये दोनों परस्पर पूरक तथा अन्योन्याश्रित हैं।
गृहस्थ के लिए साधारणतया मृषावाद का सर्वथा त्याग
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