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चैन धर्म-दर्शन
८. उपशमन - कर्म की जिस अवस्था में उदय अथवा उदीरणा संभव नहीं होती उसे उपशमन कहते हैं । इस अवस्था में उद्वर्तना, अपवर्तना और संक्रमण की संभावना का अभाव नहीं होता । जिस प्रकार राख से आवृत अग्नि उस अवस्था में रहती हुई अपना कार्यविशेष नही करती किन्तु आवरण हटते ही पुनः प्रज्वलित होकर अपना कार्य करने को तैयार हो जाती है उसी प्रकार उपशमन अवस्था में रहा हुआ कम उस अवस्था के समाप्त होते ही अपना कार्य प्रारम्भ कर देता है अर्थात् उदय मे आकर फल प्रदान करना शुरू कर देता है ।
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६. नित्ति - कर्म की वह अवस्था निघत्ति कहलाता है जिसमें उदीरणा और संक्रमण का सर्वथा अभाव रहता है । इस अवस्था में उद्वर्तना और अपवर्तना की असंभावना नही होती ।
१०. निकाचन-कर्म की उस अवस्था का नाम निकाचन है जिसमें उद्वर्तना, अपवर्तना, संक्रमण और उदीरणा ये चारों अवस्थाएँ असम्भव होती हैं । इस अवस्था का अर्थ है कर्म का जिस रूप में बँध हुआ उसी रूप में उसे अनिवार्यतः भोगना । इसी अवस्था का नाम नियति है । इसमें इच्छा स्वातन्त्र्य का सर्वथा अभाव रहता है । किसी-किसी कर्म की यही अवस्था होती है ।
११. अबाधा -कर्म का बंधने के बाद अमुक समय तक किसी प्रकार का फल न देना उसकी अबाधा - अवस्था है । इस अवस्था के काल को अबाधाकाल कहते हैं । इस पर पहले प्रकाश डाला जा चुका है ।
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