________________
कर्म सिद्धान्त
४९५
·
अल्पकालीन सम्यक् दृष्टि- द्वितीय गुणस्थान का नाम सास्वादन सम्यग्दृष्टि अथवा सासादन- सम्यग्दृष्टि है । इसका काल अति अल्प है । मिथ्यादृष्टि व्यक्ति को मोह का प्रभाव कुछ कम होने पर जब कुछ क्षणों के लिए सम्यक्त्व अर्थात् यथार्थता की अनुभूति होती है- तत्वदृष्टि प्राप्त होती है- सच्ची श्रद्धा होती है तब उसकी जो अवस्था होती है उसे सास्वादन सम्यगदृष्टि गुणस्थान कहते हैं । इस गुणस्थान में स्थित आत्मा तरन्त मोहोदय के कारण सम्यक्त्व से गिरकर पुनः मिथ्यात्व में प्रविष्ट हो जाती है | इस अवस्था में सम्यक्त्व का अति अल्पकालीन आस्वादन होने के कारण इसे स्वास्वादन - सम्यग्दृष्टि नाम दिया गया है । इसमें आत्मा को सम्यक्त्व का केवल स्वाद चखने को मिलता है, पूरा रस प्राप्त नहीं होता ।
मिश्र दृष्टि - तृतीय गुणस्थान आत्मा की वह मिश्रित अवस्था है जिसमें न केवल सम्यगदष्टि होती है, न केवल मिथ्यादृष्टि । इसमें सम्यक्त्व और मिथ्यात्व मिश्रित अवस्था में होते हैं जिसके कारण आत्मा में तत्त्वातत्त्व का यथार्थ विवेक करने की क्षमता नहीं रह जाती । वह तत्त्व को तत्त्व समझने के साथ ही तत्त्व को भी तत्त्व समझने लगती है । इस प्रकार तृतीय गुणस्थान में व्यक्ति की विवेकशक्ति पूर्ण विकसित नहीं होती । यह अवस्था अधिक लम्बे काल तक नहीं चलती । इसमें स्थित आत्मा शीघ्र ही अपनी तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार या तो मिथ्यात्व - अवस्था को प्राप्त हो जाती है या सम्यक्त्व - अवस्था को । इस गुणस्थान का नाम मिश्र अर्थात् सम्यक् - मिथ्यादृष्टि है ।
ग्रंथिभेद एवं सम्यक् श्रद्धा -- मिथ्यादव अवस्था में रही हुईं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org