Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
५. एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और दो देश असद्
भावपर्यायों से आदिष्ट है, अतः त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और (दो) आत्माएं नहीं हैं। ६. दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और एक देश
असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएं हैं और आत्मा नहीं हैं। ७. एक देश सदभावपर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा देश तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, अतः त्रिदेशी स्कन्ध आत्मा
है और अवक्तव्य है। ८. एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और दो देश तदु- भयपर्यायों से आदिष्ट हैं, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा
है और (दो) अवक्तव्य हैं। ६. दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और एक देश तदु
भयपर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशी स्कन्ध (दो)
आत्माए हैं और अवक्तव्य है । १०. एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और दूसरा देश
आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध
आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है । ११. एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और दो देश __ आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतः त्रिप्रदेशी स्कन्ध
आत्मा नहीं है और (दो) अवक्तव्य हैं। १२. दो देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और एक देश तदु
प्यपर्यायों से आदिष्ट है, अत: त्रिप्रदेशी स्कन्ध (दो)
आत्माएं नहीं हैं और अवक्तव्य है । १३. एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भाव
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