Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
___ अन्य पृथ्वियों, देवलोकों और सिद्ध शिला के विषय में भी यही बात कही गई है। परमाणु के विषय में पूछने पर भी यही उत्तर मिला। द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में महावीर ने इस प्रकार उत्तर दिया१. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है।। २. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है । ३. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात अवक्तव्य है। ४. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य है। ६. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है ।
यह कैसे ? १. द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है। २. पर के आदेश से आत्मा नहीं है। ३. उभय के आदेश से अवक्तव्य है। ४. एक अंश (देश) सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा
अंश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, अतः द्विप्रदेशी स्कन्ध
आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५. एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और एक देश उभयपर्यायों से आदिष्ट है, अतएव द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है
और अवक्तव्य है। ६. एक देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा देश
तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, अतः द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है।
त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में पूछने पर निम्न उत्तर मिला१. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है।
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