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सापेक्षवाद गोचर नहीं होता। संसर्ग में भेद की प्रधानता होती है और अभेद की अप्रधानता । सम्बन्ध में अभेद की प्रधानता होती है और भेद की अप्रधानता।
शब्द-जिस प्रकार अस्तित्व का प्रतिपादन 'है' शब्द द्वारा होता है उसी प्रकार अन्य गुणों का प्रतिपादन भी 'है' शब्द से होता है। 'घट में अस्तित्व है', 'घट में कृष्णत्व है', 'घट में कठिनत्व है' इन सब वाक्यों में 'है' शब्द घट के विविध धर्मो को प्रकट करता है। जिस 'है' शब्द से अस्तित्व का प्रतिपादन होता है उसी 'है' शब्द से कृष्णत्व, कठिनत्व आदि धर्मों का भी प्रतिपादन होता है। अतः शब्द की दृष्टि से भी अस्तित्व और अन्य धर्मों में अभद है । अस्तित्व की तरह प्रत्येक धर्म को लेकर सकलादेश का संयोजन किया जा सकता है। ___ सकलादेश के आधार पर जो सप्तभंगी बनती है उसे प्रमाणसप्तभगी कहते हैं । विकलादेश की दृष्टि से जो सप्तभंगी बनती है वह नयसप्तभंगी है । सप्तभंगी क्या है ? एक वस्तु में अविरोधपूर्वक विधि और प्रतिषेध की विकल्पना सप्तभगी है।' प्रत्येक वस्तु में कोई भी धर्म विधि और निषेध उभयस्वरूप वाला होता है, यह हम देख चुके हैं। जब हम अस्तित्व का प्रतिपादन करते हैं तब नास्तित्व भी निषेधरूप से हमारे सामने उपस्थित हो जाता है । जब हम सत् का प्रतिपादन करते हैं तब असत् भी सामने आ जाता है। जब हम नित्यत्व का कथन करते हैं तब अनित्यत्व भी निषेधरूप से सम्मुख उपस्थित हो जाता है। किसी भी वस्तु के विधि और निषेधरूप दो पक्ष वाले धर्म का विना विरोध के प्रतिपादन करने से जो सात १. प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधिप्रतिषेधविकल्पना
सप्तभंगी। -तत्त्वार्थ राजवार्तिक, १.६.५.
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