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सापेक्षवाद
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ये तीनों धर्म रहते हैं । काल जैसे पदार्थ मे परिवर्तन करता है वैसे ही केवलज्ञान में भी परिवर्तन करता है । जैन दर्शन केवलज्ञान को कूटस्थ नित्य नहीं मानता । किसी वस्तु की भूत, वर्त - मान और अनागत- ये तीन अवस्थाएं होती है । जो अवस्था आज अनागत है वह कल वर्तमान होती है । जो आज वर्तमान है वह कल भूत में परिणत होती है । केवलज्ञान आज की तीन प्रकार की अवस्थाओं को आज की दृष्टि से जानता है । कल का जानना आज से भिन्न हो जाएगा, क्योकि आज जो वर्तमान है कल वह भूत होगा और आज जो अनागत है कल वह वर्तमान होगा। यह ठीक है कि केवली तीनों कालों को जानता है, किन्तु जिस पर्याय को उसने कल भविष्यत् रूप से जाना था उसे आज वर्तमान रूप से जानता है । इस प्रकार काल-भेद से केवली के ज्ञान में भी भेद आता रहता है । वस्तु की अवस्था के परिवर्तन के साथ-साथ ज्ञान की अवस्था भी बदलती रहती है । इसलिए केवलज्ञान भी कथंचित् अनित्य है और कथंचित् नित्य । स्याद्वाद और केवलज्ञान में विरोध की कोई सम्भावना नहीं ।
महावीर ने केवलज्ञान होने के पहले चित्र-विचित्र पंख - वाले एक बड़े पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखा । इस स्वप्न का विश्लेषण करने पर स्याद्वाद फलित हुआ । पुंस्कोकिल के चित्र-विचित्र पंख अनेकान्तवाद के प्रतीक हैं । जिस प्रकार जैन दर्शन में वस्तु की अनेकरूपता की स्थापना स्याद्वाद के आधार पर की गई उसी प्रकार बौद्ध दर्शन में विभज्यवाद के नाम पर इसी प्रकार का अंकुर प्रस्फुटित हुआ किन्तु उचित मात्रा में पानी और हवा न मिलने के कारण वह मुरझा गया और अन्त में नष्ट हो गया । स्याद्वाद को समय-समय पर उपयुक्त सामग्री मिलती रही जिससे वह आज दिन तक बराबर बढ़ता रहा ।
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