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सापेक्षवाद
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पर्यायों से, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध ( अनेक ) आत्माएं हैं, आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है ।
२१. दो देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से, एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और दो देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतः (दो) आत्माए हैं, आत्मा नहीं है और (दो) अवक्तव्य हैं ।
२२. दो देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से दो देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएं हैं, (दो) आत्माएं नहीं हैं और अवक्तव्य है ।
इसी प्रकार षट्पदेशी स्कन्ध के २३ भंग किये गये हैं । २२ का पूर्ववत् निर्देश किया गया है तथा २३वाँ भंग इस प्रकार है
दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं, दो देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और दो देश तदुभयपर्यायों से आदिष्ट हैं, अतएव षट् प्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएं हैं, (दो) आत्माएँ नहीं हैं और (दो) अवक्तव्य है । '
उपर्युक्त भंगों को देखने से हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि स्याद्वाद से फलित होने वाली सप्तभंगी बाद के आचार्यों की सूझ नहीं है । यह आगमों में मिलती है और वह भी अपने प्रभेदों के साथ । २३ भंगों तक का विकास भगवतीसूत्र के उपर्युक्त सूत्र में मिलता है । यह तो एक दिग्दर्शन मात्र है । नाना प्रकार के विकल्पों के आधार पर अनेक भंगों का निर्माण किया जा सकता है । यह प्रवक्ता के बुद्धिकौशल पर निर्भर है । इन सब भंगों का निचोड़ सात भंग हैं : अस्ति, नास्ति, अनुभय १. भगवतीसूत्र, १२.१०.४६९.
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