Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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सापेक्षवाद
३६७ २. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है । ३. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् अवक्तव्य है। ४. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और ( दो) आत्माएं
नहीं हैं। ६. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् ( दो) आत्माएं हैं और आत्मा
नहीं है। ७. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्थात् आत्मा है और अवक्तव्य है। ८. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और ( दो ) आत्माएं __ अवक्तव्य हैं। ६. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् (दो) आत्माएं हैं और अवक्तव्य है। १०. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है। ११. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है और (दो) अवक्त
व्य हैं। १२. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् (दो) आत्माएँ नहीं हैं और
अवक्तव्य है। १३. त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है, आत्मा नहीं है और
अवक्तव्य है। ऐसा क्यों? १. त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है। २. त्रिप्रदेशी स्कन्ध पर के आदेश से आत्मा नहीं है। ३ त्रिप्रदेशी स्कन्ध तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है। ४. एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और एक देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और आत्मा नहीं है।
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