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जैन धर्म-दर्शन
अशैलेशीप्रतिपन्न जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं और करणवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी। जो जीव पराक्रम करते हैं वे करणवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं। जो जीव पराक्रम नहीं करते वे करणवीर्य की अपेक्षा से अवीर्य हैं।'
गौतम-यदि कोई यह कहे कि मैं सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव, सर्वसत्त्व की हिंसा का प्रत्याख्यान (त्याग) करता हूं तो उसका यह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान ?
महावीर-कथंचित् सुप्रत्याख्यान है और कथंचित् दुष्प्रत्याख्यान है।
गौतम-यह कैसे?
महावीर--जो यह नहीं जानता कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये स हैं और ये स्थावर, उसका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है । वह मृषावादी है। जो यह जानता है कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर, उसका प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है। वह सत्यवादी है।
महावीर की दृष्टि का पता लगाने के लिए ये संवाद काफी हैं । बुद्ध ने आराधना को लेकर जिस प्रकार विभाजनपूर्वक उत्तर दिया, महावीर ने भी ठीक उसी शैली से अपने शिष्यों की शंका का समाधान किया। जो प्रश्न पूछा गया उसका विश्लेषण किया गया कि इस प्रश्न का क्या अर्थ है। किस दृष्टि से इसका क्या उत्तर दिया जा सकता है। जितनी दृष्टियाँ सामने आई उतनी दृष्टियों से प्रश्न का समाधान किया गया। एक
१. वही, १. ८. ७२. २. वही, ७. २. १७०.
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