Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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सापेक्षवाद
जयन्ती-यह कैसे ?
महावीर-जो जीव अधार्मिक हैं यावत् अधार्मिक वृत्तिवाले हैं उनका निर्बल होना अच्छा है, क्योंकि यदि वे बलवान् होंगे तो अनेक जीवों को कष्ट देंगे। जो जीव धार्मिक हैं यावत् धार्मिक वृत्तिवाले हैं उनका बलवान् होना अच्छा है, क्योंकि वे बलवान होने से अधिक जीवों को सुख देंगे।'
गौतम-भगवन् ! जीव सकम्प हैं या निष्कम्प ? महावीर-गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी। गौतम--यह कैसे ?
महावीर-जीव दो प्रकार के हैं : संसारी और मुक्त । मुक्त जीव दो प्रकार के हैं : अनन्तर सिद्ध और परम्पर सिद्ध । परम्पर सिद्ध निष्कम्प हैं और अनन्तर सिद्ध सकम्प । संसारी जीवों के भी दो भेद हैं : शैलेशी और अशैलेशी। शैलेशी जीव निष्कम्प होते हैं और अशैलेशी सकम्प ।
गौतम-जीव सवीर्य हैं या अवीर्य । महावीर-जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी। गौतम-यह कैसे ?
महावीर-जीव दो प्रकार के हैं : संसारी और मुक्त । मुक्त तो अवीर्य हैं। संसारी जीव दो प्रकार के हैं : शैलेशीप्रतिपत्र और अशैलेशीप्रतिपन्न । शैलेशीप्रतिपन्न जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं और करणवीर्य की अपेक्षा से अवीर्य हैं।
१. भगवतीसूत्र, १२.२.४४३. २. वही, २५. ४.
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