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सापवाद
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करना हमारे सामर्थ्य से परे है। संजय ने जिन प्रश्नों के विषय में विक्षेपवादी वृत्ति का परिचय दिया, उनमें से कुछ ये हैं '--- १. परलोक है ?
परलोक नहीं है ? परलोक है और नहीं है ?
न परलोक है और न नहीं है ? २. औपयातिक हैं ?
औपयातिक नहीं हैं ? औपयातिक है और नहीं है ? न औपयातिक हैं न नहीं हैं ? ३. सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल है ?
सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल नहीं है ? सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल है और नहीं है ?
सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल न है न नहीं है ? ४, मरणानन्तर तथागत है ? मरणानन्तर तथागत नहीं है ? मरणानन्तर तथागत है और नहीं है ?
मरणानन्तर न तथागत है न नहीं है ? स्याद्वाद और संजय के संशयवाद में यही अन्तर है कि स्याद्वाद निश्चयात्मक है, जब कि संजय का संशयवाद अनिश्चयात्मक है। महावीर प्रत्येक पक्ष का अपेक्षाभेद से निश्चित उत्तर देते थे। वे न तो बुद्ध की तरह अव्याकृत कहकर टाल दिया करते और न संजय की तरह अनिश्चय का बहाना बनाते। जो लोग स्याद्वाद को संजयवेलट्टिपुत्त का संशयवाद
१. दीघनिकाय-सामञफलसुत्त.
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