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सापेक्षवाद
दूसरी गति में जाता है, जीव कहाँ से आया, कौन था और कहाँ जाएगा, तब तक कोई जीव आत्मवादी नहीं हो सकता, लोकवादी नहीं हो सकता, कर्मवादी नहीं हो सकता और क्रियावादी नहीं हो सकता। ये सब बातें मालूम होने पर ही जीव आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी बन सकता है।'
जीव की शाश्वतता और अशाश्वतता के लिए निम्न संवाद देखिए
गौतम-भगवन् ! जीव शाश्वत है या अशाश्वत ?
महावीर-गौतम ! जीव किसी दृष्टि से शाश्वत है, किसी दृष्टि से अशाश्वत है । गौतम ! द्रव्याथिक दृष्टि से शाश्वत है, भावार्थिक दृष्टि से अशाश्वत है।
द्रव्यदृष्टि अभेदवादी है और पर्याय दृष्टि भेदवादी है। द्रव्यदृष्टि से जीव नित्य है और पर्यायदृष्टि अर्थात् भावदृष्टि १. इहमेगेसि नो सन्ना भवई तंजहा-पुरस्थिमाओ वा दिसाओ आगओ
अहमंसि, दाहिणाओ वा........... आगओ अहमसि । एवमेगेसि नो नायं भवइ-अस्थि मे आया उववाइए। नरिथ मे आया उववाइए । के अहं आसी, के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ?
से जं पुण जाणेज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अनेसि वा अन्तिए सोच्चा तंजहा-पुरथिमाओ....... ....अस्थि मे आया ........से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई ।
~आचारांग, १.१.१.२.३. २. जीवाणं भंते ! कि सासया असासया?
गोयमा ! जीवा सिय सासया सिय असासया। गोयना ! दवट्ठयाए सासया भावळ्याए असासया ।
-भगवतीसूत्र, ७. २. २७३.
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