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जैन धर्म-दर्शन
करना कारण से कार्य का अनुमान है । साधारण से कारण को देखकर कार्य का अनुमान नहीं किया जाता। उसी कारण से कार्य का अनुमान किया जा सकता है जिसके होने पर कार्य अवश्य होता है। बाधक कारणों का अभाव और साधक कारणों की सत्ता ये दोनों आवश्यक हैं।
किसी कार्यविशेष को देखकर उसके कारण का अनुमान करना कार्य-साधन है। प्रत्येक कार्य का कोई-न-कोई कारण होता है । बिना कारण के कात्पित्ति नहीं हो सकती। कारण और कार्य के सम्बन्ध का ज्ञान होने पर ही कार्य को देखकर कारण का अनुमान हो सकता है। नदी में बाढ़ आती हुई देखकर यह अनुमान करना कि कहीं पर जोरदार वर्षा हई है, कार्य से कारण का अनुमान है। धूम को देखकर अग्नि का अनुमान करना भी कार्य से कारण का अनुमान है।
एक अर्थ में दो या अधिक कार्यो का एक साथ रहना एकार्थ-समवाय है। एक ही फल में रूप और रस साथ-साथ रहते हैं। रूप को देखकर रस का अनुमान करना या रस को देखकर रूप का अनुमान करना एकार्थ-समवाय का उदाहरण है। रप और रस म न कार्य-कारण भाव है, न रूप और रस का एक स्वभाव है। इन दोनों की एकत्रस्थिति एकार्थसमवाय के कारण है।
किसी विरोधी भाव से किसी के अभाव का अनुमानविरोधी साधन से होने वाला अनुमान है। 'यहाँ पर ठण्ड नहीं है क्योंकि अग्नि जल रही है', 'यहाँ पर अग्नि का अभाव है पयाकि ठग लग रही है' आदि विरोधी साधन के उदाहरण हं । अग्नि और गाइक का परस्पर विरोध है, इसलिए एक के होने पर दूगरी नहीं हो सकती । विरोधी की मात्रा ठीक-ठीक
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