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जैन धर्म-दर्शन सम्बन्ध है वही व्याप्ति है। इस सम्बन्ध का ग्रहण करने वाला ज्ञान तर्क है-ऊह है।
अनुमान-साधन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान है।' साधन का अर्थ है हेतु अथवा सिंग। साधन को देखकर तदविनाभावी साध्य का ज्ञान करना अनुमान है। उदाहरण के लिए धूम, जो कि अग्नि का साधन है, उसे देखकर अग्नि, जो कि साध्य है, उसका ज्ञान करना अनुमान है। साधन और साध्य के बीच अविनाभाव सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए। अविनाभाव का अर्थ है किसी के बिना न होना। जो चीज जिसके बिना नहीं हो सकती उस चीज के होने पर उसका होना अविनाभाव के कारण है। धूम अग्नि के बिना नहीं हो सकता। धूम के होने पर अग्नि का होना अविनाभाव के कारण है।
अनुमान दो प्रकार का है-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान। __स्वार्थानुमान-साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से रहने वाले स्वनिश्चित साधन से साध्य का ज्ञान करना स्वार्थानुमान है।' अविनाभाव का एक और लक्षण देखिए। सहभावी
और क्रमभावी कार्यों का क्रमभाव और सहभावविषयक जो नियम है वह अविनाभाव है। कुछ कार्य सहभावी होते हैं
और कुछ क्रमभावी। रूप और रस सहभावी हैं। रूप को १. साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् । -वही, १.२.७. २. स्वार्थ स्वनिश्चितसाध्याविनाभावकलक्षणात् साधनात साध्य
ज्ञानम् । -प्रमाणमीमांसा, १.२.६. ३. सहक्रमभाविनो: सहक मभावनियमोऽविनाभावः । -वही,१.२.१०
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