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जैन धर्म-दर्शन
सामना करना पड़ेगा। ऐसी परिस्थिति में यही अच्छा है कि प्रत्येक पदार्थ को स्वभाव से ही सत् माना जाय और सत् और पदार्थ में कोई भेद न माना जाय ।
द्रव्य और पर्याय :
द्रव्य शब्द के अनेक अर्थ होते हैं उनमें से सत्, तत्त्व अथवा पदार्थ परक अर्थ पर हम विचार कर चुके हैं। जैन साहित्य में द्रव्य शब्द का प्रयोग सामान्य के लिए भी हुआ है । जाति अथवा सामान्य को प्रकट करने के लिए द्रव्य और व्यक्ति अथवा विशेष को प्रकट करने के लिए पर्याय शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
द्रव्य अथवा सामान्य दो प्रकार का है - तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य । एक ही काल में स्थित अनेक देशों में रहने वाले अनेक पदार्थों में जो समानता की अनुभूति होती है वह तिर्यक सामान्य है । जब हम कहते हैं कि जीव और अजीव दोनों सत् हैं, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्य हैं, तब हमारा अभिप्राय तिर्यक् सामान्य से है । जब हम कहते हैं कि जीव दो प्रकार का है - संसारी और सिद्ध । संसारी जीव के पाँच भेद हैं- एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रियआदि । पुद्गल चार प्रकार का हैस्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु । इसी प्रकार अन्य प्रकार के सामान्यमूलक भेदों में तिर्यक सामान्य अभीप्सित है । एक जाति का जहाँ निर्देश होता है, अनेक व्यक्तियों में एक सामान्य जहाँ विवक्षित होता है वहाँ तिर्यक् सामान्य समझना चाहिए ।
जब कालकृत नाना अवस्थाओं में किसी विशेष द्रव्य का एकत्व या अन्वय विवक्षित हो, एक विशेष पदार्थ की अनेक अवस्थाओं की एक एकता या ध्रौव्य अपेक्षित हो, तब उस
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