Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन वर्तित करता है। दीपक को प्रकाशित करने के लिए किसी अन्य प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि दीपक स्वयं प्रकाशमान है किन्तु अन्य पदार्थों को प्रकाशित करने के लिए दीपक की उपयोगिता है क्योंकि वे अप्रकाशमान हैं। दीपक अप्रकाशमान को प्रकाशित करता है, प्रकाशमान को नहीं। प्रकाशमान को प्रकाशित करने से अनवस्था उत्पन्न होती है। जिस प्रकार दीपक अप्रकाशमान वस्तु को प्रकाशित करता है उसी प्रकार क्या काल भी अपरिवर्तनशील पदार्थों को परिवर्तित करता है ? नहीं, ऐसा नहीं माना जा सकता। प्रत्येक पदार्थ स्वभाव से ही परिवर्तनशील है अतः उसे अपरिवर्तनशील कैसे कहा जा सकता है ? जब वस्तु स्वयं परिवर्तनशील है तब परिवर्तन के लिए काल की क्या आवश्यकता है ?
काल परिवर्तन का सहायक कारण है अर्थात् परिवर्तनशील पदार्थों के परिवर्तन में सहायता पहुंचाता है। जैसे धर्म गति में तथा अधर्म स्थिति में सहायक होता है वैसे ही काल परिवर्तन में सहायक बनता है। ऐसा मानने में भी एक कठिनाई है। गति अथवा स्थिति वस्तु का अनिवार्य धर्म नहीं है । वस्तु कभी गतिशील होती है तो कभी स्थितिशील। जीव अथवा पद्गल जब गति करना चाहता है तब धर्म द्रव्य उसकी सहायता करता है। इसी प्रकार जीव या पुद्गल जब स्थित होना चाहता है तब अधर्म द्रव्य उसकी मदद करता है। जीव और पुद्गल की गति एवं स्थिति ऐच्छिक हैं, अनिवार्य नहीं। ऐच्छिक क्रिया कभी होती है, कभी नहीं होती। अतः उसका कोई माध्यम अथवा सहायक कारण माना जा सकता है। परिवर्तन अथवा स्थायित्व इस प्रकार का धर्म या गुण या क्रिया नहीं है जो ऐच्छिक हो-किसी की इच्छा पर निर्भर हो-कभी हो और कभी न
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