Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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ज्ञानमीमासा
२४६
ज्ञान
प्रत्यक्ष
परोक्ष
केवल
नोकेवल
आभिनिबोधिक
श्रुत
अवधि
मनःपर्यय
भवप्रत्यय क्षायोपशमिक ऋजुमति विपुलमति
श्रुतनिःसृत
अश्रुतनिःसृत
अर्थावग्रह व्यंजनावग्रह अर्थावग्रह व्यंजनावग्रह
अंगप्रविष्ट
अंगबाह्य
आवश्यक
आवश्यकव्यतिरिक्त
कालिक उत्कालिक ३. द्वितीय भूमिका में इन्द्रियजन्य मतिज्ञान का परोक्ष के अन्दर समावेश किया गया। तृतीय भूमिका में इस विषय में थोड़ा-सा परिवर्तन हो गया। इन्द्रियजन्य मतिज्ञान को प्रत्यक्ष और
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