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जैन धर्म-दर्शन
अवग्रह:
अवग्रह को बताने वाले कई शब्द हैं। नंदीसूत्र में अवग्रह के लिए अवग्रहणता, उपधारणता, श्रवणता, अवलम्बनता और मेधा का प्रयोग हुआ है।' तत्त्वार्थभाष्य में निम्न शब्द आते हैं-अवग्रह, ग्रह, ग्रहण, आलोचन और अवधारण ।२ इन्द्रिय और अर्थ का सम्बन्ध होने पर नाम आदि की विशेष कल्पना से रहित सामान्य मात्र का ज्ञान अवग्रह है। इस ज्ञान में यह निश्चित प्रतीति नहीं होती कि किस पदार्थ का ज्ञान हुआ है। केवल इतना मालूम होता है कि यह कुछ है । इन्द्रिय और अर्थ का जो सामान्य सम्बन्ध है वह दर्शन है । दर्शन के बाद पैदा होने वाला सामान्य ज्ञान अवग्रह है। इसमें केवल सत्ता का ही ज्ञान नहीं होता अपितु पदार्थ का प्रारंभिक ज्ञान हो जाता है। अवग्रह दो प्रकार का होता हैव्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह । अर्थ व इन्द्रिय का संयोग ज्ञान व्यंजनावग्रह है। ऊपर जो अवग्रह की व्याख्या की गई है वह वास्तव में अर्थावग्रह है। इस व्याख्या के अनुसार व्यंजनावग्रह दर्शन की कोटि में आता है और अवग्रह का अर्थ अर्थावग्रह ही होता है। व्यंजनावग्रह को ज्ञान मानने वालों के लिए दर्शन इन्द्रिय और अर्थ के स्पष्ट संयोग या सम्बन्ध से भी पहले होता है। यह एक प्रतिभास मात्र है जो सत्ता मात्र का ग्रहण १. ३०. २. १. १५. ३. अक्षार्थ योगे दर्शनानन्तरमर्थ ग्रहणमवग्रहः ।
-प्रमाणमीमांसा, १. १. २६. ४. अर्थस्य ।
व्यं जनस्यावग्रह: । -- तत्त्वार्थ सूत्र, १. १७-१८.
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