Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
अवयवी तथा आश्रित और आश्रय के दो भेद नहीं किए । जब कारण से कार्य का अनुमान कर सकते हैं तो गुणी से गुण, अवयवी से अवयव और आश्रय से आश्रित का अनुमान भी हो सकता है। सूत्रकार ने किस सिद्धान्त के आधार पर पाँच भेद किये, नहीं कहा जा सकता।
दृष्टसाधर्म्यवत-इसके दो भेद हैं-सामान्यदृष्ट और विशेषदृष्ट । किसी एक वस्तु के दर्शन से सजातीय सभी वस्तुओं का ज्ञान करना अथवा जाति के ज्ञान से किसी विशेष पदार्थ का ज्ञान करना सामान्यदृष्ट अनुमान है। एक पुरुष को देखकर पुरुषजातीय सभी व्यक्तियों का ज्ञान करना अथवा पुरुषजाति के ज्ञान से पुरुषविशेष का ज्ञान करना सामान्यदृष्ट अनुमान का दृष्टान्त है। ___ अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को पृथक् करके उसका ज्ञान करना विशेषदष्ट अनुमान है। अनेक पुरुषों में खड़े हुए विशेष पुरुष को पहचानना कि 'यह वही पुरुष है जिसे मैंने अमुक स्थान पर देखा था' विशेषदृष्ट दृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान का उदाहरण है।
सामान्यदृष्ट उपमान के समान लगता है और विशेषदृष्ट प्रत्यभिज्ञान से भिन्न प्रतीत नहीं होता।
काल की दृष्टि से भी अनुमान तीन प्रकार का होता है । अनुयोगद्वार में इन तीनों प्रकारों का वर्णन है :
१. अतीतकालग्रहण-तृणयुक्तवन, निष्पन्नशस्यवाली:पृथ्वी, जल से भरे हुए कुण्ड-सर-नदी-तालाब आदि देखकर यह अनुमान करना कि अच्छी वर्षा हुई है, अतीतकालग्रहण है।
२. प्रत्युत्पन्नकालग्रहण भिक्षाचर्या के समय प्रचुर मात्रा
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