Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन नाम है, हेतु का नहीं। भद्रबाह ने कितने अवयव माने हैं और वे कौन-कौन से हैं, इसकी गणना इस प्रकार है :
दो-प्रतिज्ञा, उदाहरण तीन-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण
पाँच-प्रतिज्ञा, हेतु. दृष्टान्त, उपसंहार, निगमन १. दस-प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविशुद्धि, हेतु, हेतुविशुद्धि , दृष्टान्त,
दृष्टान्तविशुद्धि, उपसंहार, उपसंहारविशुद्धि, निग
मन, निगमनविशुद्धि २. दस--प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविभक्ति, हेतु, हेतुविभक्ति, विपक्ष,
प्रतिषेध, दृष्टान्त, आशंका, तत्प्रतिषेध, निगमन दो, तीन और पाँच अवयवों के नाम वही हैं जिनका अन्य दार्शनिकों ने उल्लेख किया है। दस अवयवों के नामों का भद्रबाहु ने स्वतन्त्र निर्माण किया है ।
उपमान-उपमान दो प्रकार का है-साधोपनीत और वैधोपनीत । ___ साधोपनीत के तीन भेद हैं-किचित्साधोपनीत, प्रायःसाधोपनीत और सर्वसाधोपनीत ।
किंचित्साधोपनीत-जैसा मन्दर है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षप है वैसा मन्दर है। जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । जैसा आदित्य है वैसा खद्योत है, जैसा खद्योत है वैसा आदित्य है। जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है। ये उदाहरण किचित्साधोपनीत उपमान के हैं। मन्दर और सर्षप का थोड़ा-सा साधर्म्य है। इसी प्रकार आदित्य और खद्योत आदि का समझ लेना चाहिए।
१. प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनान्यवयवाः । -न्यायसूत्र, १.१.३२.
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