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जैन धर्म-दर्शन
अर्थात् उसका सम्पूर्ण ज्ञान इन्द्रियों व मन पर आधृत न होकर सीधा आत्मा से सम्बद्ध होता है तथा प्रत्यक्ष एवं साक्षात् होता है । ऐसी स्थिति में अविद्यमान पर्याय सर्वज्ञज्ञान में कैसे प्रत्यक्ष हो सकेंगे, सर्वज्ञ उनका साक्षात्कार कैसे कर सकेगा ?
जिन पर्यायों अथवा पदार्थों का सर्वज्ञ को प्रत्यक्ष अर्थात् साक्षात्कार होता है उनकी लम्बाई, चौडाई, वजन आदि का भी क्या वह सीधा आत्मा से ज्ञान कर सकता है ? दूसरे शब्दों में, क्या सर्वज्ञ बिना किन्हीं साधनों की सहायता के केवल आत्मज्ञान से विश्व के समस्त पदार्थों का, जिनमें पर्वत, समुद्र, सूर्य, चन्द्र आदि भी समाविष्ट हैं, नाप-तौल जान सकता हैबता सकता है ? पदार्थों की लम्बाई-चौड़ाई आदि का बिना नाप-तौल के हीनाधिक रूप से अर्थात् अनुमानतः तो कई बार ज्ञान होता दिखाई देता है किन्तु ठीक-ठीक ज्ञान के लिए तो बाह्य साधनों की सहायता अपेक्षित रहती ही है। भौतिक वस्तुओं का नाप-तौल केवल आध्यात्मिक एकाग्रता से सही-सही रूप में कैसे हो सकता है, इसे समझना-समझाना असर्वज्ञ के लिए अशक्य है । हाँ, सामान्यतौर से किसी वस्तु का नाप-तौल अनुमानतः जाना जा सकता है और वह कभी - कभी पूरा सही भी हो सकता है किन्तु इस प्रकार का ज्ञान असंदिग्ध रूप से यथार्थ ही होगा, यह निश्चित नहीं है । यह हो सकता है कि कोई पदार्थ या क्षेत्र साधारण व्यक्ति को उतना स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष नहीं होता जितना कि सर्वज्ञ को हो सकता है किन्तु उसका ठीक-ठीक नाप-तौल बिना तत्सम्बद्ध साधनों की सहायता के असंदिग्धरूप से होना शक्य प्रतीत नहीं होता । सर्वज्ञ के कहे जानेवाले भूगोल- खगोलसम्बन्धी वचनों की अप्रामाणिकता से भी यही निष्कर्ष निकलता है। इतना ही नहीं,
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