Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
२५०
जैन धर्म-दर्शन परोक्ष दोनों में स्थान दिया गया। इसका कारण लौकिक प्रभाव मालूम होता है। नन्दीसूत्र के अनुसार इस भूमिका का सार यह है :
ज्ञान
आभिनिवोधिक श्रत
अवधि मनःपर्यय केवल
प्रत्यक्ष
परोक्ष
परोक्ष
इन्द्रियप्रत्यक्ष नोइन्द्रियप्रत्यक्ष आभिनिबोधिक श्रुत १. श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष १. अवधि २. चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष २. मनःपर्यय ३. घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष ३. केवल ४. रसनेन्द्रियप्रत्यक्ष ५. स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष
श्रुतनिःसृत
अश्रुतनिःमृत
अवग्रह ईहा
अवाय धारणा
व्यंजनावग्रह
अर्थावग्रह
औल्पत्तिकी वैनयिकी कर्मजा पारिणामिकी उपर्युक्त तीनों भूमिकाओं को देखने से पता लगता है कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org