Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन रुक्मी तथा हरण्यवत और ऐरावत के बीच शिखरी पर्वत है। चूंकि विदेह क्षेत्र इन सबके मध्य में है अतः मेरु पर्वत विदेह के बीचोंबीच स्थित है।
भरत क्षेत्र की उत्तरी सीमा पर स्थित हिमवान् पर्वत के दोनों छोर पूर्व-पश्चिम में लवणसमुद्र में गये हुए हैं। इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र की दक्षिणी सीमा पर स्थित शिखरी पर्वत के दोनों छोर भी लवणसमुद्र में पहुंचे हुए हैं। प्रत्येक छोर दो भागों में विभक्त होने के कारण दोनों पर्वतों के आठ किनारे लवणसमुद्र में गये हुए हैं। प्रत्येक किनारे पर मनुष्यों की वस्तीवाले सात-सात स्थान है। इस प्रकार कुल छप्पन ऐसे स्थान हैं जो अन्तरद्वीप कहलाते हैं।'
जम्बूद्वीप में चौदह मुख्य नदियाँ हैं : १. गंगा, २. सिन्धु, ३. रोहित्, ४. राहितास्या, ५. हरित्, ६. हरिकांता, ७. सीता, ८. सीतोदा, ६. नारी, १०. नरकान्ता, ११. सुवर्णकूला, १२. रूप्यकूला, १३. रक्ता, १४. रक्तोदा । इनमें से गंगा और सिन्धु भरत क्षेत्र में बहती हैं। इसी प्रकार दो-दो का जोड़ा शेष छः क्षेत्रों के लिए भी समझ लेना चाहिए । इन सात जोड़ों में से पहली सात नदियाँ पूर्व में तथा बाद की सात नदियां पश्चिम में बहती हैं।
धातकीखण्ड में मेरु, वर्ष अथवा क्षेत्र और वर्षधर पर्वतों की संख्या जम्बूद्वीप की अपेक्षा दुगुनी है । उसमें दो मेरु, चौदह वर्ष अथवा क्षेत्र और बारह वर्षधर पर्वत हैं। मेरु आदि की जो संख्या धातकीखण्ड में है वही पुष्कराध द्वीप में है। इस प्रकार जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्करार्ध ( आधा पुष्करवर द्वीप)-इन ढाई द्वीपों में कुल पांच मेरु, पैंतीस वर्ष अथवा १. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ३. २. सर्वार्थसिद्धि, ३. २०-२२.
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