Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
२३७
तत्वविचार देवियों को याद करके ही अपनी कामेच्छा को शान्त करते हैं। शेष देव काम-वासना से रहित होते हैं।
भवनपतियों अथवा भवनवासियों में निम्नोक्त देवों की गणना होती है : १ असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. विद्युत्कुमार, ४. सुपर्णकुमार, ५. अग्निकुमार, ६. वातकुमार, ७. स्तनितकुमार, ८. उदधिकुमार, ६. द्वीपकुमार और १०. दिक्कुमार । चूंकि ये देवगण अपने वस्त्राभूषणों, शस्त्रास्त्रों, वाहनों आदि से युवा दीखते हैं अतः कुमार कहे जाते हैं। ___ असुरकुमारों के भवन प्रथम नरक के पंकबहुल भाग में होते हैं। अन्य कुमारों के निवासस्थान प्रथम पृथ्वी रत्नप्रभा के ठोस भाग की ऊपरी और नीची तहों में एक-एक हजार योजन छोड़ कर होते हैं ।3।
किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच व्यन्तर देव हैं। राक्षस पंकबहुल भाग में रहते हैं। अन्य व्यन्तर देवों के निवासस्थान असंख्य द्वीपों और सागरों से परे ऊपरी ठोस भाग में होते हैं ।
ज्योतिष्क देवों में सूर्यो, चन्द्रमाओं, ग्रहों, नक्षत्रों और तारों का समावेश होता है। इनमें सबसे नीचे तारे होते हैं जो ७६० योजन की ऊंचाई पर घूमते हैं। सूर्य उनसे १० योजन अधिक ऊंचे घूमते हैं। इनसे ८० योजन अधिक ऊंचे चन्द्र घूमते हैं। उनसे चार योजन अधिक ऊचे नक्षत्र हैं। इनसे चार योजन अधिक ऊचे बुध ग्रह है। इनसे तीन योजन अधिक ऊंचे शुक्र हैं। इनसे भी तीन योजन अधिक ऊचे बृहस्पति, १. तत्त्वार्थसूत्र, २. ३५, ४७, ५२; ४. १-१०, १७-१८. २. वही, ४. ११. ३. सर्वार्थसिद्धि, ४. १०. ४. वही, ४. ११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org