________________
तस्यविचार
२२६
जाय व बीच की गांठ खोल दी जाय। इससे ऊपर के भाग में भरा हुआ पानी नीचे के भाग में भरी हुई हवा के आधार पर टिका रहेगा । इसी प्रकार पृथ्वी आदि भी वायु के आधार पर प्रतिष्ठित हैं । अथवा जैसे कोई मनुष्य अपनी कमर पर हवा से भरी हुई मशक बांधकर पानी के ऊपर तैरता है वैसे ही वायु के आधार पर पृथ्वी आदि टिके हुए हैं ।"
अधोलोक की सात भूमियों के नाम ये हैं : १ . रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. वालुकाप्रभा, ४. पंकप्रभा, ५. धूमप्रभा, ६. तमः प्रभा, ७. महातमः प्रभा । इनका वर्ण क्रमशः रत्न, शर्करा, वालुका, पंक, धूम, तम और महातम ( घनान्धकार ) के सदृश होने के कारण इनके ये नाम हैं । रत्नप्रभा भूमि के तीन काण्ड हैं । सबसे ऊपर का प्रथम खरकाण्ड रत्नबहुल है । उसकी मोटाई अर्थात् ऊपर से नीचे तक का विस्तार १६,००० योजन है । उसके नीचे का दूसरा काण्ड पंकबहुल है जिसकी मोटाई ८४,००० योजन है । उसके नीचे का तृतीय काण्ड जलबहुल है जो मोटाई में ८०,००० योजन है। तीनों काण्डों की मोटाई मिलाने से रत्नप्रभा की मोटाई १,८०,००० योजन होती है । दूसरी से लेकर सातवीं भूमि तक ऐसे काण्ड नहीं हैं । उनमें जो भी पदार्थ हैं, सर्वत्र एक समान हैं । दूसरी भूमि की मोटाई १,३२,००० योजन, तीसरी की १,२८,०००, चौथी की १,२०,०००, पांचवी की १,१८,०००, छठी की १,१६,००० और सातवीं की १,०८,००० योजन है । सातों भूमियों के नीचे जो घनोदधि आदि हैं उनकी मोटाई भी विभिन्न प्रमाणों में है ।
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १. ६.
२. सर्वार्थसिद्धि ( ३.१) आदि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org