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तत्त्वविचार
१४५ आत्माएं भी निश्चित आकार धारण करती हुई निश्चित स्थान में अर्थात् लोक के अन्त में रहती हैं । तो फिर अरूपी का क्या अर्थ है ? सामान्य इन्द्रियों द्वारा अर्थात् इन्द्रियों की सामान्य शक्ति द्वारा जिस पदार्थ का साक्षात् ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता वह पदार्थ अरूपी कहा जाता है। इस दृष्टि से रूपी पुद्गल का सूक्ष्मतम अंश अणु भी अरूपी है। ____जो पदार्थ आकारयुक्त है वह रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्शयुक्त है या नहीं? यदि उसे रूपादियुक्त माना जाय तो रूपी और अरूपी का अन्तर ही समाप्त हो जाता है । यदि उसमें रूपादि का अभाव माना जाय तो आकार का कोई अर्थ नहीं रहता क्योंकि रूपादि के अभाव में आकार कैसे संभव हो सकता है ? आकार क्या है ? स्थानविशेष में होनेवाली स्थितिविशेष का नाम ही आकार अथवा आकृति है । आकार में कम-से-कम रूप तो होना ही चाहिए। यदि रूप मान लिया जाय तो रूपसहभावी अन्य गुण स्वतः सिद्ध हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में पुद्गल और जीवादि के गुणों में क्या भिन्नता रह जाएगी? प्रतीत होता है कि विविध तत्त्वों में दो प्रकार के अन्तर हैं : १. प्रत्येक तत्त्व का अपना-अपना विशेष कार्य है जो कि उन्हें एक-दूसरे से भिन्न करता है। २. जीवादि तत्त्व पुद्गलादि तत्त्वों से सूक्ष्मसूक्ष्मतर हैं जिससे पुद्गल का तो इन्द्रियों से ग्रहण अर्थात् ज्ञान हो जाता है किन्तु अन्य द्रव्यों का इन्द्रियजन्य ज्ञान नहीं हो पाता अर्थात् उन्हें इन्द्रियां ग्रहण करने में असमर्थ रहती हैं । हम केवल उनके कार्यों द्वारा उनके अस्तित्व का अनुमान कर सकते हैं । वे इन्द्रियों के प्रत्यक्ष विषय नहीं बन सकते। जो विशिष्ट शक्तिसम्पन्न अथवा साधनसम्पन्न व्यक्ति उनका प्रत्यक्ष ज्ञान करते हैं वे उन्हें किस यथास्थित रूप में देखते हैं, हम नहीं कह सकते।
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