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जैन धर्म-दर्शन .
पुद्गल के कार्यों का यह एक दिग्दर्शन मात्र है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी कार्य हैं, सब पुद्गल के ही समझने चाहिए । शरीर, वाणी, मन, निःश्वास, उच्छ्वास, सुख, दु.ख, जीवन, मरण आदि सभी पुद्गल के ही कार्य हैं ।' कुछ कार्य शुद्ध पौद्गलिक होते हैं और कुछ कार्य आत्मा और पुद्गल दोनों के सम्बन्ध से होते हैं । शरीर, वाणी आदि कार्य आत्मा और पुद्गल के सम्बन्ध से होते हैं। . पुद्गल और आत्मा : . आत्मा पुद्गल से प्रभावित होती है या नहीं? जैन दर्शन यह मानता है कि संसारी आत्मा पुद्गल के बिना नहीं रह सकती। जब तक जीव संसार में भ्रमण करता है तब तक पुद्गल और जीव का सम्बन्ध अविच्छेद्य है। पुद्गल आत्मा को किस प्रकार प्रभावित करता है ? इसका उत्तर, जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, यही है कि पुद्गल से ही शरीर का निर्माण होता है, वाणी, मन और श्वासोच्छवास भी पुद्गल के ही कार्य हैं । यही बात जीवकाण्ड में इस प्रकार कही गई है___"पुद्गल शरीर-निर्माण का कारण है। आहारकवर्गणा से
औदारिक, वैक्रिय और आहारक ये तीन प्रकार के शरीर बनते हैं तथा श्वासोच्छवास का निर्माण होता है । तेजोवर्गणा से तेजस शरीर बनता है। भाषावर्गणा वाणी का निर्माण करती है। मनोवर्गणा रो मन का निर्माण होता है। कर्मवर्गणा से कार्मण शरीर बनता है ।''३ १. शरीरवाङ मनःप्राणापाना: पुद्गलानाम् ।
सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ।-तत्त्वार्थ सूत्र, ५. १६-२०. २. गाथा ६०६-६०८..
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