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तत्त्वविचार
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तम:
तम दृष्टि के प्रतिबन्ध का एक कारण है । यह प्रकाश का विरोधी है । नैयायिकादि तम को स्वतन्त्र भावात्मक द्रव्य न मान कर प्रकाश का अभाव मानते हैं। जैन दर्शन के अनुसार तम . अभाव मात्र नहीं है, अपितु प्रकाश की ही भांति भावात्मक द्रव्य है । जैसे प्रकाश में रूप है उसी प्रकार तम में भी रूप है, अतः तम प्रकाश को ही तरह भावरूप है। जिस प्रकार प्रकाश का भासुर रूप और उष्ण स्पर्श लोक में प्रसिद्ध है उसी प्रकार अन्धकार का कृष्ण रूप और शीत स्पर्श लोक की प्रतीति का विषय है । तम द्रव्य है क्योंकि उसमें गुण हैं । जो जो गुणवान् होता है वह वह द्रव्य होता है, जैसे आलोकादि । । छाया:
प्रकाश पर आवरण आ जाने से छाया होती है । इसके दो प्रकार हैं-तद्वर्णादि विकार और प्रतिबिम्ब ।' दर्पण आदि स्वच्छ पदार्थों में जो मुख का बिम्ब पड़ता है और उसमें आकार आदि ज्यों का त्यों देखा जाता है वह तद्वर्णादि विकाररूप छाया है। अन्य अस्वच्छ द्रव्यों पर प्रतिबिम्ब मात्र का पड़ना प्रतिबिम्वरूप छाया है।
आतप:
सूर्य, अग्नि आदि का उष्ण प्रकाश आतप है। उद्योतः
चन्द्र, मणि, खद्योत आदि का शीत प्रकाश उद्योत है।
१. वही, ५. २४. २०-२१.
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