Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जम धर्म-दर्शन की आवश्यकता नहीं है। अन्य द्रव्यों से अधिक व्यापक होने के कारण आकाश सबका आधार है। ___ आकाश किसी पदार्थ को किस प्रकार स्थान देता है ? क्या जिसे स्थान प्राप्त नहीं है उसे स्थान देता है अथवा जिसे पहले से ही स्थान प्राप्त है उसे नया स्थान देता है ? चूँकि प्रत्येक पदार्थ कहीं-न-कहीं स्थित तो होता ही है अतः जिसे स्थान प्राप्त नहीं है उसे स्थान देने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। जिसे पहले से ही स्थान प्राप्त है उसे ही नया स्थान दिया जा सकता है। आकाश भी अनादि है अर्थात् हमेशा से है और अन्य द्रव्य भी अनादि हैं अर्थात् उनकी सत्ता भी हमेशा से है। इनका युगपत् अस्तित्व होने पर भी एक को आधार मानकर अन्य को आधेय मानना कहाँ तक युक्तियुक्त है ? युगपत् अस्तित्व होने पर भी इनमें शरीर और हस्तादि की तरह आधाराधेय-भाव माना जा सकता है। चूंकि आकाश अन्य द्रव्यों से अधिक विस्तृत है अतः वह आधार एवं उसमें रहनेवाले अन्य द्रव्य आधेय माने गये हैं। जिस तरह शरीर और हस्तादि में आधाराधेय-भाव देखा जाता है उस तरह आकाश
और अन्य द्रव्यों में आधाराधेय-भाव दृष्टिगोचर नहीं होता। समस्त पदार्थ एक-दूसरे के आधार से ही टिके हुए देखे जाते हैं । पृथ्वी इन सबका दृष्ट आधार है। जैन मान्यता के अनुसार पृथ्वी का आधार जल, जल का आधार वायु तथा वायु का आधार आकाश है। आकाश का कोई अन्य आधार नहीं है। वह स्वाधृत है।
न्याय-वैशेषिक दर्शन में आकाश को सूक्ष्म भौतिक तत्त्व माना गया है जिसका कार्य शब्द है। शब्द गुण से आकाश द्रव्य के अस्तित्व का अनुमान किया जाता है। आकाश सर्वव्यापक
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