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तत्त्वविचार
२१६ ही संभव है। स्थूल पदार्थ एक-दूसरे की गति और स्थिति में वाधक होते हैं। सूक्ष्म पदार्थ वैसा नहीं करते। पुद्गल के स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों रूप होते हैं। अन्य तत्त्व केवल सूक्ष्म रूप में ही होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक जीव अथवा प्रत्येक पुद्गल प्रत्येक अवस्था में लोक के किसी भी भाग में गति अथवा स्थिति कर सके । जीव एवं पुद्गल विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार के सामर्थ्य से युक्त होते हैं। तदनुसार ही वे गति या स्थिति कर सकते हैं। अद्धासमय :
परिवर्तन का जो कारण है उसे अद्धासमय या काल कहते हैं। काल की व्याख्या दो दृष्टियों से की जा सकती है। द्रव्य का स्वजाति के परित्याग के बिना वैस्रसिक और प्रायोगिक विकाररूप परिणाम' व्यवहार दृष्टि से काल को सिद्ध करता है। प्रत्येक द्रव्य परिवर्तित होता रहता है। परिवर्तनों के होते हुए भी उसकी जाति का कभी विनाश नहीं होता। इस प्रकार के परिवर्तन परिणाम कहे जाते हैं। इन परिणामों का जो कारण है वह काल है। यह व्यवहार दृष्टि से काल की ख्या हुई। प्रत्येक द्रव्य और पर्याय की प्रतिक्षणभावी स्वसत्तानुभूति वर्तना है । इस वर्तना का कारण काल है। यह काल की पारमार्थिक व्याख्या है। प्रत्येक द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक वृत्तिवाला है। यह वृत्ति प्रतिक्षण रहती है। कोई भी क्षण इस वृत्ति के बिना नहीं रह सकता। यही पारमार्थिक काल का कार्य है। काल का अर्थ है परिवर्तन । परिवर्तन को समझने के लिए अन्वय का ज्ञान होना आवश्यक है। अनेक १. तत्त्वार्थराजवातिक, ५. २२. १०. २. वही, ५.२२.४.
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