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तत्त्वविचार
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कृत । अक्षरीकृत मनुष्य आदि की स्पष्ट भाषा है और अनक्षरीकृत द्वीन्द्रियादि प्राणियों की अस्पष्ट भाषा है। भाषा-लक्षण प्रायोगिक ही है। अभाषालक्षण के दो भेद हैं--प्रायोगिक और वैनसिक । वस्त्रसिक शब्द बिना किसी आत्म-प्रयत्न के उत्पन्न होता है। बादलों की गर्जना आदि वैनसिक है । प्रायोगिक शब्द के चार प्रकार हैं -तत, वितत, धन और सौषिर । चर्म से बने वाद्य मृदंग, पटह आदि से उत्पन्न होनेवाला शब्द तत कहलाता है। तारवाले वाद्य वीणा, सारंगी आदि से पैदा होनेवाला शब्द वितत है। . घंटा, ताल आदि से उत्पन्न शब्द घन कहलाता है । फूंक कर बजाये जानेवाले शंख, बंसी आदि से पैदा होनेवाला शब्द सौषिर कहलाता है।'
बन्ध: __ वैनसिक और प्रायोगिक भेद से बंध भी दो प्रकार का है। वनसिक बंध के पुनः दो भेद होते हैं-आदिमान और अनादि । स्निग्ध और रूक्ष गुण-निर्मित विद्युत्, उल्का, जलधार, अग्नि, इन्द्रधनुरादिविषयक बन्ध आदिमान है। धर्म, अधर्म और आकाश का जो बन्ध है वह अनादि है । प्रायोगिक बन्ध दो प्रकार का है : अजीवविषयक और जीवाजीवविषयक । जतुकाष्ठादि का बन्ध अजीवविषयक है । जीवाजीवविषयक बन्ध कर्म और नोकर्म के भेद से दो प्रकार. का है। ज्ञानावरणादि आठ प्रकार का बन्ध कर्म-बन्ध है । औदारिकादि-विषयक बन्ध नोकर्म बन्ध है।
१. तत्त्वार्थ राजवातिक, ५. २४. २-६. २. वही, ५. २४. १०-१३.
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