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जैन धर्म-दर्शन
देने का प्रयत्न करेंगे। वे कार्य हैं- शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत ।"
शब्द :
वैशेषिक आदि भारतीय दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानते हैं । सांख्य शब्द तन्मात्रा से आकाश की उत्पत्ति मानता है । जैन दर्शन इन दोनों मान्यताओं को मिथ्या सिद्ध करता है । आकाश पौद्गलिक नहीं है अतः शब्द, जोकि पौद्गलिक है, इन्द्रियों का विषय बनता है, आकाश से कैसे उत्पन्न हो सकता है ? शब्दतन्मात्रा से भी आकाश की उत्पत्ति नहीं हो सकती क्योंकि शब्द पौद्गलिक है अतः शब्द - तन्मात्रा भी पौद्गलिक ही होनी चाहिए और यदि शब्द - तन्मात्रा पौद्गलिक है तो उससे उत्पन्न होने वादा आकाश भी पौद्गलिक होना चाहिए, किन्तु आकाश पौद्गलिक नहीं है अतः शब्द - तन्मात्रा से आकाश उत्पन्न नहीं हो सकता । जब एक पौद्गलिक अवयव का दूसरे पौद्गलिक अवयव से संघर्ष होता है तब शब्द उत्पन्न होता है । अकेला स्कन्ध शब्द उत्पन्न नहीं कर सकता तब अकेला परमाणु शब्द कैसे पैदा कर सकता है ? 'परमाणु का रूप अत्यन्त सूक्ष्म होता है । वह पृथ्वी, अप्, तेज और वायु का कारण है और अशब्दात्मक है । शब्द का कारण स्कन्धों का परस्पर में टकराना है ।" अतः शब्द पुद्गल का कार्य है ।
शब्द दो प्रकार का है -- भाषालक्षण और तद्विपरीत अभाषालक्षण । भाषा-लक्षण दो प्रकार का है - अक्षरीकृत और अनक्षरी१. शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभे दतमश्छायातपोद्द्योतवन्तश्च । - तत्त्वार्थ सूत्र, ५.२४.
२. पंचास्तिकायसार, ८५-८६.
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