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तत्त्वविचार
१९३ आवश्यकता रहती है । उस कारण के होने पर उत्पन्न वाले होने भेद को बाह्य कारणपूर्वक कहा गया है।
विविक्त अर्थात् पृथक् भूतों का एकीभाव संघात है। यह बाह्य और आभ्यन्तर भेद से दो प्रकार का हो सकता है। दो पृथक-पृथक् अणुओं का संयोग संघात का उदाहरण है।
जब भेद और संघात दोनों एक साथ होते हैं तब जो स्कन्ध बनता है वह भेद और संघात उभयपूर्वक होनेवाला स्कन्ध कहा जाता है। जैसे ही एक स्कन्ध का एक हिस्सा अलग हुआ और उस स्कन्ध में उसी समय दूसरा स्कन्ध आकर मिल गया जिससे एक नया स्कन्ध बन गया । यह नया स्कन्ध भेद और संघात उभयपूर्वक है।
इस प्रकार स्कन्ध के निर्माण के तीन मार्ग हैं। इन तीन मार्गों में से किसी भी मार्ग से स्कन्ध बन सकता है । कभी केवल भेद से ही स्कन्ध बनता है तो कभी केवल संघातपूर्वक ही स्कन्ध का निर्माण होता है तो कभी भेद और संघात उभयपूर्वक स्कन्ध निर्मित होता है। } संघात अथवा बन्ध कैसे होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में जैन दार्शनिक कहते हैं कि 'पुद्गल में स्निग्धत्व और रूक्षत्व के कारण बन्ध होता है ।'' स्निग्ध और रूक्ष दो स्पर्श हैं। इन्हीं के कारण पुद्गल में बंध होता है । बन्ध के लिए निम्नलिखित बातें जरूरी हैं :२ १. स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः।-तत्त्वार्थ सूत्र, ५.३२. २. न जघन्य गुणानाम् ।
गुणसाम्ये सदशानाम् । । द्वयधिकादिगुणानां तु । -वहीं, ५.३३-३५. १३
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