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जैन धर्म-दर्शन
तो क्या, दो परमाणु भी नहीं रह सकते । आकाश के जिस एक प्रदेश में कोई एक परमाणु स्थित हो उस प्रदेश में अन्य परमाणु आ ही कैसे सकता है क्योंकि वहाँ उसके लिए न तो स्थान ही रिक्त है और न पूर्वस्थित परमाणु किसी प्रकार की गुंजाइश ही कर सकता है । वह प्रदेश नवागन्तुक परमाणु को तभी प्राप्त हो सकता है जब पूर्वस्थित परमाणु वहाँ से हट जाय । जब एक परमाणु ने किसी प्रदेश को ( सर्वतः ) व्याप्त कर रखा है तब दूसरा परमाणु वहाँ रह ही कैसे सकता है ? उस प्रदेश में या तो पहले वाला परमाणु ही रहेगा या बाद वाला ही । दोनों एक साथ वहाँ नहीं रह सकते क्योंकि वह पूरा स्थान एक के लिए ही है तथा रहने वाले में यह सामर्थ्य भी नहीं है कि वह अन्य को अपने साथ रख सके । एक प्रदेश का अर्थ ही है एक परमाणु जितना स्थान |
स्कन्ध :
यह पहले कहा जा चुका है कि स्कन्ध अणुओं का समुदाय है । स्कन्ध तीन तरह से बनते हैं-भेदपूर्वक, संघात - पूर्वक और भेद और संघात उभयपूर्वक । "
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भेद दो कारणों से होता है -- आभ्यन्तर और बाह्य । आभ्यन्तर कारण से जो एक स्कन्ध का भेद होकर दूसरा स्कन्ध बनता है उसके लिए किसी बाह्य कारण की अपेक्षा नहीं रहती । स्कन्ध में स्वयं विदारण होता है । बाह्य कारण से होनेवाले भेद के लिए स्कन्ध के अतिरिक्त अन्य कारण की
१. भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते । - तत्त्वार्थ सूत्र, ५.२६.
२. सर्वार्थसिद्धि ५. २६.
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