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तत्त्वविचार
होना चाहिए ।" यह अर्थ आत्मा है ।
आत्मा का स्वरूप :
तत्त्वार्थ सूत्र में जीव का लक्षण बताते समय उपयोग शब्द का प्रयोग किया गया है । उपयोग बोधरूप व्यापार - विशेष है । यह व्यापार चैतन्य के कारण होता है। जड़ आदि पदार्थों में उपयोग नहीं है क्योंकि उनमें चेतना शक्ति का अभाव है । यह चेतना शक्ति आत्मा को छोड़कर अन्य किसी भी द्रव्य में नहीं पायी जाती । अतः इसे जीव का लक्षण कहा गया है । उपयोग के अतिरिक्त उत्पाद, व्यय, धौव्य, सत्त्व, प्रमेयत्वादि अनेक साधारण धर्म भी उसमें पाये जाते हैं । जीव का विशेष धर्मं चेतना ही तत्त्वार्थंकार के शब्दों में उपयोग है, अतः वही उसका लक्षण है । लक्षण में उन्हीं गुणों का समावेश होता है जो असाधारण होते हैं | उपयोग को जो आत्मा का लक्षण कहा गया है वह मोटे तौर से है । वैसे चैतन्य ही आत्मा का धर्म है । यह चैतन्य केवल उपयोगरूप ही नहीं है, अपितु सुख और वीर्यात्मक भी है । उपयोग का अर्थ होता है ज्ञान और दर्शन । 3 आत्मा में अनन्त चतुष्टय होता है-अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यं । उपयोग केवल ज्ञान और दर्शन ही है । सुख और वीर्य का इसी के अन्दर अन्तर्भाव करने से यह लक्षण पूर्ण हो सकता है। अनन्त चतुष्टय संसारी आत्मा में अपने पूर्णरूप में नहीं होता । मुक्त आत्मा अथवा
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१. जीवो त्ति सत्यमिणं सुद्धत्तणओ घडाभिहाणं व ।
२. उपयोगो लक्षणम् । - तत्त्वार्थ सूत्र, २.८. ३. स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः । - वही, २. ९.
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- विशेषावश्यकभाष्य, १५७५.
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