Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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तत्त्वविचार
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इसका उत्तर यह है कि निःसन्देह अणु अणु के रूप में प्रत्यक्षग्राह्य नहीं हैं, किन्तु जब वे किसी स्थूल पदार्थ के रूप में परिणत हो जाते हैं तब इन्द्रियप्रत्यक्ष का विषय बनते हैं । घटरूप से परिणत परमाणु चक्षुरिन्द्रियग्राह्य होते हैं । जब तक वे परमाणु किसी कार्यरूप में परिणत नहीं होते तब तक उनका प्रत्यक्ष नहीं होता । घटादि कार्यरूप में परिणत होने पर उनका प्रत्यक्ष होता है । इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि अणु प्रत्यक्ष का विषय न बनता हुआ भी सत् है । अणु का कार्य जब प्रत्यक्षग्राह्य है तब अणु भी सत् है, ऐसा कहने में कोई बाधा नहीं । आत्मा के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि आत्मा किसी भी दशा में इन्द्रियप्रत्यक्ष का विषय नहीं बन सकती । अतः आत्मा असत् है ।
आत्मा अनुमान का विषय भी नहीं बन सकती क्योंकि अनुमान प्रत्यक्षपूर्वक होता है। जब किसी वस्तु के अविनाभाव - सम्बन्ध का ग्रहण होता है, उस सम्बन्ध का कहीं प्रत्यक्ष होता है और पूर्व सम्बन्ध ग्रहण की स्मृति होती है तब अनुमान-जन्य ज्ञान पैदा होता है । आत्मा और उसके किसी अविनाभावी लिंग का कभी प्रत्यक्ष ही नहीं होता, ऐसी दशा में आत्मा अनुमान का विषय कैसे बन सकती है ? हमें आत्मा के किसी भी ऐसे लिंग का ज्ञान नहीं जिसे का अनुमान कर सकें ।"
देखकर आत्मा
आगम-प्रमाण से भी आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व की सिद्धि नहीं की जा सकती क्योंकि जिसका प्रत्यक्ष ही नहीं वह आगम का विषय कैसे बन सकता है ? आगम प्रमाण का मुख्य आधार प्रत्यक्ष है । कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसे आत्मा का प्रत्यक्ष हो
१. बही, १५५०-५१ .
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