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जैन धर्म-दर्शन खण्डन किया और एकता के आधार पर अभेद की स्थापना की। ___ तीसरा पक्ष भेद और अभेद दोनों का समर्थन करता है, भेद और अभेद दोनों को स्वतन्त्र रूप से सत् मानकर दोनों में सम्बन्ध स्थापित करता है। न्याय-वैशेषिक दर्शन सामान्य
और विशेष नाम के दो भिन्न-भिन्न पदार्थ मानता है। वे दोनों पदार्थ स्वतन्त्र एवं एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। किसी सम्बन्धविशेष के आधार पर सामान्य और विशेष मिल जाते हैं । सामान्य एकता का सूचक है। विशेष भोद का सूचक है। वस्तु में भेद और अभेद विशेष और सामान्य के कारण होते हैं । एकता की प्रतीति अभेद के कारण है-सामान्य के कारण है। सब गायों में गोत्व सामान्य रहता है इसलिए सब में 'गो'-ऐसी एकाकार प्रतीति होती है। यही प्रतीति एकता की प्रतीति है। उसी प्रकार सब गाएं व्यक्तिगत रूप से अलग भी मालूम होती हैं। उनका अपना भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व है। जाति और व्यक्ति का सम्बन्ध ही भेद और अभेद की प्रतीति है। वैसे दोनों एक-दूसरे से अत्यन्त भिन्न हैं किन्तु समवाय सम्बंध के कारण दोनों मिले हुए मालूम होते हैं। इस प्रकार भेद और अभेद को भिन्न माननेवाला पक्ष दोनों को सम्बन्ध-विशेष से मिला देता है किन्तु वास्तव में दोनों को भिन्न मानता है । यद्यपि जाति और व्यक्ति कभी भिन्न-भिन्न उपलब्ध नहीं होते क्योंकि वे अयुतसिद्ध हैं।' तथापि दोनों स्वतन्त्र एवं एक-दूसरे से अत्यन्त भिन्न हैं।
चौथा पक्ष भेदविशिष्ट अभेद का है । इसके दो भेद हो जाते हैं । एक के मत से अभद प्रधान रहता है और भेद गौण
१. अयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानां इहप्रत्ययहेतुः सम्बन्धः स
समवायः । -स्याद्वादमंजरी, का० ७.
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