Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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तत्वविचार
में हुआ है उतना भारतीय परम्परा की किसी अन्य धारा में शायद ही हुआ हो अथवा यों कहिए कि नहीं हुआ । यह जैन परम्परा के लिए गौरव का विषय है। विचार की दृष्टि से अनेकान्तवाद का जो समर्थन जैन दर्शन के साहित्य में मिलता है उसका शतांश भी अन्य दर्शनों में नहीं मिलता; यद्यपि प्रायः सभी दर्शन किसी न किसी रूप में अनेकान्तवाद का समर्थन करते हैं । अनेकान्तवाद के आधार पर फलित होने वाले अन्य अनेक विषयों पर जैनाचार्यों ने प्रतिभायुक्त ग्रन्थ लिखे हैं जिनका यथावसर परिचय दिया जा चुका है। इतना ही नहीं अपितु कई बातें जैन दर्शन में ऐसी भी हैं जो आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी यथार्थ हैं । यद्यपि वैज्ञानिक पद्धति से जैनाचार्य किसी प्रकार के आविष्कारात्मक प्रयोग न कर सके, किन्तु उनकी दृष्टि इतनी सूक्ष्म तथा अर्थग्राही थी कि उनकी अनेक बातें आज भी विज्ञान की कसौटी पर कमी जा सकती हैं | शब्द, अणु, अन्धकारादि विषयक अनेक ऐसी मान्यताएं हैं जो आज की वैज्ञानिक दृष्टि से विरुद्ध नहीं हैं । तात्पर्य यह है कि जैन परम्परा धर्म और दर्शन दोनों का मिला-जुला रूप है। दर्शन की कुछ मान्यताएं विज्ञान की दृष्टि से भी ठीक हैं | आचार में अहिंसा और विचार में अनेकान्तवाद का प्रतिनिधित्व करने वाली जैन परम्परा धर्म और दर्शन दोनों को अपने अंक में छिपाये हुए है । अस्तु, धर्म की दृष्टि से वह जैन धर्म है; दर्शन की दृष्टि से वह जैन दर्शन है ।
भारतीय विचार प्रवाह को दो धाराएँ :
भारतीय संस्कृति अनेक प्रकार के विचारों का विकास है। इस संस्कृति में न जाने कितनी धाराएं प्रवाहित होती रही हैं । अनेकता में एकता और एकता में अनेकता - यही हमारी
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