Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
जैन धर्म-दर्शन का साहित्य जयधवला के प्रारम्भ का एक-तिहाई भाग भी इन्हीं वीरसेन का लिखा हुआ है।
इन्द्रनन्दि-कृत श्रुतावतार में बताया गया है कि बप्पदेव गुरु द्वारा सिद्धान्तग्रन्थों की टीका लिखे जाने के कितने ही काल पश्चात् सिद्धान्ततत्वज्ञ एलाचार्य हुए। उनके पास वीरसेन गुरु ने सकल सिद्धान्त का अध्ययन किया तथा षट् खण्डागम पर ७२००० श्लोक-प्रमाण प्राकृत-संस्कृतमिश्रित धवला टीका लिखी। इसके बाद कषायप्राभूत की चार विभक्तियों पर २०००० श्लोक-प्रमाण जयधवला टीका लिखने के पश्चात् वे स्वर्गवासी हुए। इस जयधवला को उनके शिष्य जयसेन (जिनसेन) ने ४०००० श्लोक-प्रमाण टीका और लिखकर पूर्ण किया। वीरसेनाचार्य का समय धवला एवं जयधवला के अन्त में प्राप्त प्रशस्तियों एवं अन्य प्रमाणों के आधार पर शक की आठवीं शती सिद्ध होता है। आगमिक प्रकरण :
आगमान्तर्गत विभिन्न विषयों का विशेष व्यवस्थित प्रतिपादन करने की दृष्टि से रचे गये छोटे-बड़े ग्रन्थ प्रकरण कहलाते हैं। इस प्रकार के प्रकरण तीन वर्गों में विभक्त होते हैं : आगमिक, तार्किक और औपदेशिक । ताकिक प्रकरण अधिक नहीं हैं। औपदेशिक प्रकरण भी आगमिक प्रकरणों की तुलना में कम हैं। आगमिक प्रकरण सर्वाधिक हैं। ___ आचार्य सिद्धसेन-कृत सन्मतितर्क, आचार्य हरिभद्र-कृत धर्मसंग्रहणी, उपाध्याययशोविजय-कृत तत्त्वविवेक, धर्मपरीक्षा आदि का समावेश तकप्रधानता के कारण तार्किक प्रकरणों में होता है। आचार्य कुन्दकुन्द-कृत प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकायसार आदि ग्रन्थ भी इस वर्ग में समाविष्ट होते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org