Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
रचना की वह तो अद्भुत ही है। जैन-दर्शन के ग्रन्थों में इस प्रकार का ठोस एवं विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ शायद दूसरा नहीं है । समन्तभद्र की आप्तमीमांसा पर अकलंक की जो अष्टशती नाम की टीका थी उस पर उन्होंने अष्टसहस्री नामक टीका लिखी। इस प्रकार यह ग्रन्थ समन्तभद्र, अकलंक और विद्यानन्द तीनों की प्रतिभा से एक अद्वितीय कृति बन गई। विशेष कठिन होने के कारण विद्वानों में इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि कष्टसहस्री के नाम से है। विद्यानन्द की शैली है वादी और प्रतिवादी को लड़ा देना और स्वयं दोनों की दुर्बलता का लाभ उठाना ।
प्रमाणशास्त्र पर विद्यानन्द का स्वतन्त्र ग्रन्थ प्रमाणपरीक्षा है। जैन-दर्शनप्रतिपादित प्रमाण और ज्ञान के स्वरूप का इसमें अच्छा समर्थन है । तत्त्वार्थसूत्र पर उन्होंने श्लोकवार्तिक नामक टीका लिखी जो शैली और सामग्री दोनों दृष्टियों से उत्तम है। इन ग्रन्थों के अलावा आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा आदि ग्रन्थ भी विद्यानन्द ने लिखे हैं ।
विद्यानन्द के समकालीन आचार्य अनन्तकीर्ति हुए हैं जिन्होंने लघुसर्वज्ञसिद्धि, बृहत्सर्वज्ञसिद्धि और जीवसिद्धि नामक ग्रन्थ बनाये हैं। शाकटायन और अनन्तवीर्य : - अन्य दार्शनिकों के साथ संघर्ष करते-करते कुछ आचार्य आन्तरिक संघर्ष में भी पड़ गये। श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं की कुछ विशिष्ट मान्यताओं को लेकर दोनों में संघर्ष होना प्रारम्भ हो गया। अमोघवर्ष के समकालीन शाकटायन ने स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति नामक स्वतन्त्र प्रकरणों की रचना की। आगे चलकर इन विषयों पर काफी
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