Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
जैन धर्म-दर्शन विशारद की पदवी प्रदान की गई। __पांच सौ व की जैन-दर्शन की क्षति को यदि किसी ने पूरा किया तो वे यशोविजय ही थे। इन्होंने धड़ाधड़ जैन-दर्शन पर ग्रन्थ लिखने प्रारम्भ किये। अनेकान्तव्यवस्था नामक ग्रन्थ नव्यन्याय की शैली में लिखकर अनेकान्तवाद की पुनः प्रतिष्ठा की। प्रमाणशास्त्र पर जैनतर्क भाषा और ज्ञानबिन्दु लिखकर जैन परम्परा का गौरव बढ़ाया। नय पर भी नयप्रदीप, नयरहस्य और नयोपदेश आदि ग्रन्थ लिखे । नयोपदेश पर तो नयामृततरंगिणी नामक स्वोपज्ञ टीका भी लिखी। इसके अतिरिक्त अप्टसहस्री पर विवरण लिखा तथा हरिभद्रकृत शास्त्रवार्तासमुच्चय पर स्याद्वादकल्पलता नामक टीका लिखी। इस प्रकार अष्टसहस्री और शास्त्रवार्तासमुच्चय को नया रूप मिला । भाषारहस्य, प्रमाण रहस्य आदि अनेक ग्रन्यों के अलावा न्यायखण्डखाद्य और न्यायालोक लिखकर नवीन शैली में ही नैयायिकादि दार्शनिकों की मान्यताओं का खण्डन भी किया। दर्शन के अतिरिक्त योगशास्त्र, अलंकार, आचारशास्त्र आदि से सम्बन्ध रखने वाले ग्रन्थ भी लिखे । संस्कृत के अतिरिक्त प्राचीन गुजराती आदि भाषाओं में भी इन्होंने काफी लिखा है । इस तरह अकेले यशोविजय ने ही जैन साहित्य का बहुत बड़ा उपकार किया है। जैन-वाङमय का गौरव बढ़ाने में उन्होंने कुछ भी उठा न रखा । जैन-दर्शन की सम्मान-वृद्धि में उन्होंने पूर्ण योग दिया।
यशोविजय के अतिरिक्त उस युग में यशस्वत्सागर ने सप्तपदार्थी, प्रमाण वादार्थ, वादार्थनिरूपण, स्याद्वादमुक्तावली आदि दार्शनिक ग्रन्थ लिखे। विमलदास ने सप्तभंगीतरंगिणी की रचना नव्य-न्याय की शैली में की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org