Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन का साहित्य
भकलंक: - जैन परम्परा में प्रमाणशास्त्र का स्वतंत्र रूप से व्यवस्थित निरूपण अकलंक की देन है। दिङनाग के समय से लेकर अकलंक तक बौद्ध और बौद्धतर प्रमाणशास्त्र में जो संघर्ष चलता रहा उसे ध्यान में रखते हुए जैन प्रमाणशास्त्र का प्राचीन मर्यादा के अनुकूल प्रतिपादन करने का श्रेय अकलंक को है। प्रमाणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, लघीयस्त्रय आदि ग्रन्थ इस मत की पुष्टि करते हैं। अनेकान्तवाद के समर्थन में उन्होंने समन्तभद्रकृत आप्तमीमांसा पर अष्टशती नामक टीका लिखी। सिद्धिविनिश्चय में भी उनका यही दृष्टिकोण है। तत्त्वार्थराजवार्तिक में दर्शन और धर्म के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
अकलंक ने प्रमाण-व्यवस्था का उपन्यास इस प्रकार किया है :
१. प्रमाण के दो भेद-१. प्रत्यक्ष और २. परोक्ष । २. प्रत्यक्ष के दो भेद-१. मुख्य और २. सांव्यवहारिक । ३. परोक्ष के पांच भेद-१. स्मृति, २. प्रत्यभिज्ञान, ३.तर्क,
४. अनुमान, ५. आगम। ४. मुख्य प्रत्यक्ष के उपभेद-१. अवधि, २. मनःपर्यय,
३. केवल । ५. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष (इंद्रियानिन्द्रिय प्रत्यक्ष)-मतिज्ञान।
यह व्यवस्था आगमों में भी मिलती है। तत्त्वार्थसूत्र में भी इसी व्यवस्था का प्रतिपादन है। तत्त्वार्थ की व्यवस्था इस प्रकार है:
१. ज्ञान (प्रमाण) के पांच भेद-१. मति, २. श्रुत, ३. अवधि, ४. मनःपर्यय और ५. केवल ।
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