Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
क्षुद्रकबन्ध के ग्यारह अधिकार हैं : १. स्वामित्व, २. काल, ३. अन्तर, ४. भंगविचय, ५, द्रव्यप्रमाणानुगम, ६. क्षेत्रानुगम, ७. स्पर्शनानुगम, ८. नाना-जीवकाल, ६. नाना-जीव-अन्तर, १०. भागाभागानुगम और ११. अल्पबहुत्वानुगम।
बन्धस्वामित्वबिचय में ये विषय हैं : कर्मप्रकृतियों का जीवों के साथ बंध, कर्मप्रकृतियों की गुणस्थानों में व्युच्छित्ति, स्वोदयबंध-रूप प्रकृतियाँ, परोदयबंध-रूप प्रकृतियाँ।
वेदना खण्ड में कृति और वेदना नामक दो अनुयोगद्वार हैं। कृति सात प्रकार की है : १. नामकृति, २. स्थापनाकृति, ३. द्रव्यकृति, ४. गणनाकृति, ५. ग्रन्थकृति, ६ करणकृति और ७. भावक ति । वेदना के सोलह अधिकार हैं : १ निक्षेप, २. नय, ३ नाम, ४. द्रव्य, ५. क्षेत्र, ६. काल, ७. भाव, ८. प्रत्यय, ६. स्वामित्व, १०. वेदना, ११. गति, १२. अनन्तर, १३. सन्निकर्ष, १४. परिमाण, १५. भागाभागानुगम और १६. अल्पबहुत्वानुगम।
वर्गणा खण्ड का मुख्य अधिकार बंधनीय है, जिसमें वर्गणाओं का विस्तृत वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बंध इन चार अधिकारों का भी अंतर्भाव किया गया है।
तीस हजार श्लोक-प्रमाण महाबंध नामक छठे खण्ड में प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध इन चार प्रकार के बंधों का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। इस महाबंध की प्रसिद्धि महाधवल के नाम से भी है।
कसायपाहुड अथवा कषायप्राभूत को पेज्जदोसपाहुड अथवा प्रेयोद्वेषप्र भूत भी कहते हैं। पेज्ज का अर्थ प्रेय अर्थात् राग और दोस का अर्थ द्वेष होता है। चूंकि प्रस्तुत ग्रन्थ में राग
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