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कैवल्यप्राप्ति के लिए तो अत्यन्त निर्विकल्प, निर्भार होकर आत्म- तन्मयता ही आवश्यक होती है । अतएव आचार्य व उपाध्याय का उल्लेख मंगल, उत्तम, शरण में पृथक् रूप से नहीं किया गया है
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पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अर्हन्त पद के माध्यम से दो प्रकार के केवलियों का उल्लेख है, जिसे 'सामान्य केवली' और 'तीर्थंकर केवली' रूप में जाना जाता है। दोनों में कुछ अन्तर है । सामान्य केवली मात्र भगवान रूप में तथा तीर्थंकर केवली तीर्थंकर भगवान के रूप में पूजित होते हैं ।
सामान्य केवलीपना किन्हीं भी आत्माश्रित निर्विकल्प मुनिराज को प्रकट हो जाता है, किन्तु तीर्थंकर केवलीपना तो विशेष पुण्योदय के साथ रहते हुए आत्माश्रित निर्विकल्पता में ही होता है।
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तीर्थंकर का स्वरूप कुछ विशेषताओं से सम्पन्न होता है ।
जो धर्म - तीर्थ (मुक्ति का मार्ग) का उपदेश देते हैं, समवसरण आदि विभूति से युक्त होते हैं और जिनको तीर्थंकर नामकर्म नाम का महापुण्य का उदय होता है, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। ये चौबीस होते हैं ।
16. शान्तिनाथ
19. मल्लिनाथ
22. नेमिनाथ
प्रत्येक अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी काल में चौबीस चौबीस की संख्या में भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में अलग-अलग तीर्थंकर होते हैं। अनादि से अबतक ऐसी अनन्त चौबीसियाँ हो चुकी हैं। इस प्रकार अनादि परम्परा में अनन्त तो भगवान हुए हैं और अनन्त ही तीर्थंकर हो चुके हैं। भगवान होने पर पुनर्जन्म का नाश हो जाता है । सर्व कर्म-कलंकों से छूटने पर पुनः इस कलंकमयी संसार अवस्था में कोई वापस नहीं आता है। वर्तमान अवसर्पिणी के चतुर्थकाल में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं, जिनके नाम ये हैं1. ऋषभदेव (आदिनाथ) 2. अजितनाथ
3. सम्भवनाथ
4. अभिनन्दन नाथ
6. पद्मप्रभ
5. सुमतिनाथ 8. चन्द्रपभ
7. सुपार्श्वनाथ
9. पुष्पदन्त (सुविधिनाथ)
10. शीतलनाथ
11. श्रेयांसनाथ
12. वासुपूज्य
13. विमलनाथ
14. अनन्तनाथ
15. धर्मनाथ
17. कुन्थुनाथ 18. अरनाथ 20. मुनिसुव्रतनाथ 21. नमिनाथ 23. पार्श्वनाथ 24. महावीर
(वीर, अतिवीर, सन्मति एवं वर्द्धमान)।
उक्त सभी तीर्थंकर महापुरुष पंच कल्याणक पूजित होते हैं । इनका विस्तृत वर्णन पुराणग्रन्थों में मिलता है, वहाँ से दृष्टव्य है । संक्षेप में प्रमुख - प्रमुख परिचय इस प्रकार है—
जैनागम में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवनकाल में पाँच प्रसिद्ध घटनाओं व घटनास्थलों
तीर्थंकर परम्परा, जिनागम और अनुयोग :: 59
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